शनिवार, 6 सितंबर 2008

शब्द ब्रम्हा को मिलेगा राजभोग

उदारीकरण की आंधी में जो धूल धक्कड़ हमारी हवा में घोला जा रहा है उसमे पिछले दिनों एक घातक ज़हर को मंजूरी मिल गई है यह आर्सेनिक है प्रिंट माडिया में विदेशी पूंजी को इजाजत देना

प्रिंट माडिया में परदेसी पैसे को न्योतना के ऐसा हमला है जिसमे हमारी राष्ट्रीय अस्मिता खतरे में पड़ने वाली है इलेक्ट्रॉनिक माडिया में विदेशी अनुमति के नतीजे हम पहले ही भुगत रहे है आए दिन किसी ना किसी रुसी या चैक चॅनल को अशलीलता के आरोपों में बंद करना पड़ रहा है ज्ञान की थाली में साइड के सेक्स और हिंसा की जो चटनी सहज ही परस दी जाती है उससे बचना भरी पड़ रहा है डिस्कवरी और नेशनल गेओग्रफिक चॅनल के आगे पीछे एम् टीवी और फेशन टीवी भी आता है , जिसे इन चेनलो के मुकाबले ज्यादा देखा जाता है यह तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की बात है जिसका असर आज भी अखबारों के मुकाबले काफी कम है समाचार पत्रों के सन्दर्भ में एक शेर आज भी गर्व से पढ़ा जाता है

न तीर निकालो न तलवार संभालो

जब तोप मुकाबिल हो तो अख़बार निकालो