रविवार, 6 सितंबर 2009

मेरा पहला प्यार

एक लड़की जो मेरे दिल के करीब थी ,

पहले झगड़ती थी फ़िर हँसाती थी ,

चेहरे पर मुस्कराहट लिए रोज़ चली आती थी

की अब न छोडूंगी तुम्हारा साथ जिंदगी भर।



दुनीया वही थी जो बिल्कुल मेरे जैसी थी ,

वरना दुनिया में तो लड़कीया कैसी - कैसी थी ,

वही थी जो दुनिया में मुझे सब से अज़ीज़ थी ,

जो कहती थी अब न छोडूंगी तुम्हारा साथ जिन्दागी भर ।



मैंने उसे देखा था , न कभी उससे मिला था

बस उसे ख्वाबो में समेटे हुए प्यार का एक फूल खिला था ,

वही थी जिसने मुझे दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार किया था

जो कहती थी की अब न छोडूंगी तुम्हारा साथ जिंदगी भर।



उसकी जुदाई तो में सह लूँगा , अपने आंसुओ को पी लूँगा,

पर क्या वो ऐसा कर सकेगी , बिना मेरे जी सकेगी ,

में भागवान से रोज़ कहता हु, की बस एक बार मुझे उससे मिला दे ,

इस ज़हरीली दुनिया में प्यार का एक फूल खिला दे ,

मेने मन की तू बना के भेजता है ऊपर से जोडिया ,

पर वो भी तो कहती थी की अब न छोडूंगी तुम्हारा साथ जिंदगी भर ।

शनिवार, 18 अप्रैल 2009

मेरे गौरांग प्रभु और उनकी कंठ लंगोट

राम चंद्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आएगा
एक दिन हर आदमी कंठ लंगोट लगायेगा

मेरा भारत मेरा प्यारा भारत, अपनी संस्कृति के लिए जाने जाना वाला भारत , कभी गाँधी और उनके स्वदेशी आदर्शो वाला हमारा भारत ............................ और भी बहुत कुछ वाला भारत |
क्या हुआ मेरे भारत को आज! कभी अपनी संस्कृति के लिए हमेशा विश्व में जाने जाना वाला भारत, आज क्यों उन गौरांग प्रभुओ ( अंग्रेजो) के तौर तरीको को अपनाने में लगा हुआ है | माना की ग्लोब्लिज़शन का ज़माना है भइया पर एक बात मुझे समझ में नही आती | क्या ये उदारीकरण के कारन हम अपनी संस्कृति को ही भूल जायेंगे क्या ?
लोग तो ये समझने लगे है की जब तक है सूट पहन के जेम्स बोंड की स्टाइल में ये नही कहेंगे - बोंड , माय नेम इस बोंड । तब तक कोई मानने के लिए ही तैयार नही है की हम इंटेलिजेंट है ये कहा का इंसाफ है भाई | ओर मेने तो यहाँ तक देखा है की कुछ लोग समझदार बनने के चक्कर में भरी धुप में सिर्फ़ फैशन के चक्कर में ३ पीस का सूट ओर गले में कंठ लंगोट ( टाई) पहन घूमते नज़र आते ओर कहते है - हाउ आर यू ओर भी नाना नाना प्रकार के अंग्रेजी के वर्ड जो आम आदमी की समझ से परे है ................
पर एक बात कुछ रास नही आई अंग्रेज अंग्रेजी छोड़ गए हमने सहा , पर तुमरे ये सड़े ओर इतनी गर्मी के काले काले कपड़े क्यों छोड़ गए हमारे लिए यार ............... अब माना की तुम इंग्लैंड में रहते हो ओर इंग्लैंड एक ठंडा प्रदेश है इसीलिए तुम काले कोट पहनते हो ओर टाई जिसे हमारी भाषा में कंठ लंगोट कहा जाता है वो पेहेनते हो | पर हमारे भारत में तो बड़ी गर्मी पड़ती है फ़िर भी हुमरे कुछ विदेशभक्त भारत वासी कोट पेहेन कर हमे गुलामी का एहसास करवाते रहते है|
हमारे भारत में अक्सर देखा जाता है की शादी के समय दूल्हा कंठ लंगोट और ३ पीस सूट में, और हमारी प्यारी दुल्हन भरतीय लिबास साड़ी में दिखाई देती है में पूछना चाहूँगा ये कौन सा इन्साफ है की एक भारतीय नारी की एक भारतीय फिरंगी से शादी की जाए ...............
भइया हम तो ठहरे शुद्ध भारतीय हमे तो कतई रास नही आती मेक्डोनाल्ड में बर्गर ओर पिज्जा हट में पिज्जा वाली ढकोसले वाली विदेशी संस्कृति| हमे तो चाहिए रोज़ एक गरम चाय की प्याली ओर अचार पराठा ओर जिंदगी से कुछ नही चाहिए |
आज हमे चाहिए की हम उनकी गुलामी छोडे ओर कंठ लंगोट का तिरस्कार करे मेरे गौरांग प्रभु नही तो फिर से आने ही वाले है कुछ समय में |
और अब तो बापू भी नही है जो इनका सालो का विरोध करे! ये तो आयेंगे ओर हमे पता भी नही चलेगा ऐसे हमे लूट के चले जायेंगे फ़िर हम कहते रहेंगे ...............
आह मेरा गोपालक देश !
इससे पहले ही हमे संभालना होगा और भारतीय कपड़े पेहेन्ने पर जोर देना होगा नही तो हमारी क्या हेसियत रह जायेगी
माना की चाइना के कमीना देश है जिसने भारत के साथ हमेशा धोखा ही किया है पर हमे उससे कुछ सीखना चाहिए उसने आज भी अपनी संस्कृति को बचा रखा है इन विदेशी ताकतों से |
तो में तो ठहरा एक छोटा सा नन्हा सा लेखक में कर भी क्या सकता हूँ अपनी बात ही रख सकता हूँ तो इस बच्चे की बात मान ही लीजिये ओर कुछ हमारे देश का भी पहनिए ना | ओर इस भड़कीले विधेशी लिवास को छोड़ कर हमारी वही दुनिया की सबसे सबसे बढ़िया क्वालिटी वाले पहनावे पर आ ही जाइये ना
कम से कम इतना भी नही कर सकते हो कम से कम अपने देश का बना कपड़ा ही पेहें लीजिये मत जाइये इन विदेशी शो रूम्स में हमें नही चाहिए रीबोक के कपड़े नही चैये पंतालूंस की जींस हमे तो चाहिए कुछ एसा जो एक भारतीय ने बनाया हो जिसमे से हमारे देश की मिटटी की खुशु आजाये ओर जो एक गरीब आदमी का पेट भर दे
ठीक है यार मेने भाहूत कहदिया आजकल मुझे कुछ ज्यादा ही बोलने की आदत हो गई है सच में तो अब आप ही सोचिये की आप ........................
खैके पान बनारस वाला बनना चाहते है या
माय नेम इस बोंड जेम्स बोंड
वंदे मातरम

गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

ये गाँधी नही चलेगा

ज्यादा बताने की जरुरत नही है क्यूंकि महात्मा गाँधी को तो हम जानते ही है ............ एक थे महात्मा गांघी जिन्होंने देश की आजादी के लिए कुछ किया तो, एक है ....... वरुण गाँधी जिनकी विष से भरी हुई जुबान देश को बाटने में लगी हुई है ...........
अब पूरी कहनी बताने की जरुरत तो है नही क्युकी ज्यादा बोलने की आदत तो हमे है नही ओर अपने तो देख ही लिया होगा न्यूज़ में ....
बात कुछ महीने पुरानी है जब पीलीभीत से वरुण गाँधी लोकसभा चुनाओ के लिए निर्वाचित हुए ............... वैसे इस सीट पर हमेशा उनकी परमं पुज्निये माताजी मेनका गाँधी जीतती आई है तो वरुण के लिए राह तो आसान थी ............. तभी वरुण को एहसास हुआ की इसबार चुनाओ में क्षेत्रो का फ़िर से परिसीमन हुआ है ओर १ लाख हिंदू मतदाता दुसरे क्षेत्र में ओर ९० हज़ार मुसलीम मतदाता पीलीभीटी में आ गए है | फ़िर क्या था वरुण बन्ने चले छोटे नरेन्द्र भाई मोदी ........ शुरू करदी अपनी ज़हरीली जुबान हिंदू वोट बैंक को हथियाने के लिए क्युकी अगर सारा हिंदू वोट बैंक बीजेपी को मिल गया तो जीत पक्की थी .........इसीलिए हमारे छोटे मोदी साहब ने अल्पसंख्यको को खासा कोसना शुरू किया ...... फ़िर क्या था आप लोग तो जानते है न की हमारे देश में मीडिया को जितनी आज़ादी है उतनी तो भइया हमारे प्रधान मंत्री को भी नही है न .... फ़िर क्या था हर चेनल पर वरुण आगये सुर्खियों में ओअर मीडिया ने बीजेपी बखिया उधेड़नी शुरू कर दी |
] फ़िर क्या कांग्रेस ओर दूसरी पार्टियों ने तो वरुण के जहरीले भाषण की इतनी डीवीडी खरीदी की ऐसा लगा जैसे आजकल शाहरुख़ खान की तो कोई वेल्यु ही नही रह गई हो | पार्टियों में चुनाओ प्रचार के लिए वरुण के जेहरीले भाषणों की इतनी डीवीडी बिकी जैसे कोई सोनू निगम का नया एल्बम रिलीज़ हुआ हो ...........
फ़िर होना क्या था वरुण बन गए कट्टर वादी हिदुत्व का नया चेहरा ....... ऐसा लगा की बीजेपी हिंदुत्व के दाग को धोने में लगा था को वरुण कहता है सर्फ़ एक्सेल है ना ................
फ़िर जिन्दगी ने यूँ टर्न लिया वरुण ने सोचा क्यूना में आत्मसमर्पण कर के हीरो बनजाऊ फ़िर भइयाजी चल्दिये आत्मसमर्पण करने, पहले ही वरुण पर धारा १४४ लगी हुई थी ओर भैयाजी अपने हजारो समर्थको के साथ सरेंडर करने पहुच गए| फ़िर क्या था बेहेनजी तो राजनीती की एक शातिर खिलाड़ी है उन्होने तो रासुका कानून लगा दिया वरुण पर, क्या करे ! अगर वरुण को हिंदू वोट बैंक चाहिए तो बेहेनजी को भी तो मुस्लिम वोट चाहिए ना | ऐसा करके मायावती तो मुलायम से भी बड़ी मुस्लिमो की हितेषी बन गई.........
अब वरुण चले जेल चक्की पीसने ............... पर दोस्तों ये तो इंडिया है ओर इंडिया पर एक इमोशनल अत्याचत तो होना ही था | वरुण को बिना मांगे ही धीर सारे हिंदू वोटर को फायदा हो गया ओर मायावती को मुस्लिम वोटर्स का ............... अब देखना ये की पीलीभीत सीट पर कौन सी पार्टी का परचम लहराता है ..............
इस्सी दौरान् बल ठाकरे ने अपने अख़बार सामना में कहा था - ये गाँधी हमे चलेगा ........... क्युकी इसने हिंदुत्व की बात की है ..............
अरे आदरणीय बालासाहेब ये गाँधी तो आपको चलेगा ही , अब देखना ये है की ये देश को चलता है की नही | क्युकी ये गाधी तो बड़ा कम्मुनल है ,
सुना है आज वरुण गाँधी २ हफ्ते के लिए जेल से रिहा हो गए है ..... तो हम उम्मीद करते है की अब तो वो सुधर ही जाए ओर ये जेहरिली भाषा को छोड़ दे ओर कम्मुनल होने के बजाये थोड़ा सेकुलर होने की तरफ़ ध्यान दे दे| क्युकी ये गाँधी बाल ठाकरे को तो चलेगा नही दौडेगा पर देश की जनता को थोड़े ना चलेगा .....................
तो अब देखना ये है की ये गाधी हमे चलेगा या नही इसका फ़ैसला तो देश की जनता कर ही देगी क्युकी ये जनता है सब जानती है ..........................
खैर फ़िर भी हमारे मालवा के लोग तो यही कहेंगे न - आपने कई कारणों ...................

आधी रात को लाला दारू पी के आता है
ये कविता जो में लिखने जरा हू , ये मेरे घर के पीछे रहने वाले एक आदमी की है जो हर समय नशे में डूबा रहता है ..................... जिसका नाम लाला है
आधी रात को लाला दारू पी के आता है

हर रोज़ जब बारह का गज़र होता है
एक आदमी सबकी नज़र में होता है
लोग बस अपनइ चिलमनों से झांकते रहते है
ओर कुछ तमाशबीन डींगे हांकते रहते है
हर एक आदमी उस सड़क से भाग जाता है
जहा आधी रात को लाला दारु पी के आता है

हमने तो उस सड़क से अपना नाता ही तोड़ लिया
जहा लाला ने अपना एक वजूद छोड़ दिया
रोज़ उसी सड़क से आता है उसी सड़क से जाता है
निशानी की तौर पर कांच के टुकड़े छोड़ जाता है
लेकिन बारह बजे के बाद हर वो रास्ता सुनसान हो जहा है
जहा आधी रात को लाला दारू पी के आता है

बड़ी शिद्दत से वो रोज़ मधुशाला में दारू पीता है
न जाने किन लोगो के लिए जीता है
हर आदमी उसके डर से अपने आंसुओ को पीता है
यही उसकी सबसे बड़ी अस्मिता है
वह तो परिंदा भी पर नही मरता है
जहा आधी रात को लाला दारू पी कर आता है

हर रोज़ जब दिन में बारह बजते है
लोग बड़े बेआबरू होकर तेरे कुचे से निकलते है
वह लोग जो सड़को पर घूमते समय बड़े मर्द बने फिरते है
अक्सर रात में दरत लिए लिए फिरते है
ओर कहते है ये रास्ता वही जाता है
जहा आधी रात को लाला दारू पी के आता है

उसका भय लोगो को हर रात सताता है
ओर इस सड़क से न गुज़रना बताता है
अब तो दौलातियो ने भी गम के आंसू पी रक्खे है
ओर अपने घर के बहार दरबान बैठा रक्खे है
पर वह से तो दरबान भी साथ छोड़ कर चला जाता है
जहा आधी रात को लाला दारू पी के आता है

अब तो पुलसिये भी रिश्वत नही खाते
ओर भूल कर भी उस सड़क पर नही जाते
कुछ कहो टीओ अपना ही राग अलापते है
की लाला के डर से अब तो पुलसिये भी थर्र थर्र कांपते है
एक ठोला तक उस सड़क पर नही जाता है
जहा आधी रात को लाला दारू पी के आता है

जब जब वहां बड़े बड़े नेताओ का शासन रहा
उनका एक ही झूठा आश्वासन रहा
की बेधड़क होकर इस सड़क से तुम रोज़ निकलो
ओर अपनी हिफाज़त का ज़िम्मा हम पर छोड़ निकलो
लेकिन जब पुलसिये ही साथ न दे तो नेता भी वहां कहाँ जाता है
जहा आधी रात को लाला दारू पी के आता है

डर के लाला के सभी भूल जाते है अपना माजी (भूतकाल)
कोई भी पंडित , मोमिन हो या शेख नमाजी
पंडित मस्जिद में ओर मौलाना मन्दिर में भाग जाते है
जब लालाजी दारू पे के सड़क पर उतर आते है
ओर वो हर रास्ता सुनसान हो जाता आधी रात को लाला दारू पी के आता है

शनिवार, 6 सितंबर 2008

शब्द ब्रम्हा को मिलेगा राजभोग

उदारीकरण की आंधी में जो धूल धक्कड़ हमारी हवा में घोला जा रहा है उसमे पिछले दिनों एक घातक ज़हर को मंजूरी मिल गई है यह आर्सेनिक है प्रिंट माडिया में विदेशी पूंजी को इजाजत देना

प्रिंट माडिया में परदेसी पैसे को न्योतना के ऐसा हमला है जिसमे हमारी राष्ट्रीय अस्मिता खतरे में पड़ने वाली है इलेक्ट्रॉनिक माडिया में विदेशी अनुमति के नतीजे हम पहले ही भुगत रहे है आए दिन किसी ना किसी रुसी या चैक चॅनल को अशलीलता के आरोपों में बंद करना पड़ रहा है ज्ञान की थाली में साइड के सेक्स और हिंसा की जो चटनी सहज ही परस दी जाती है उससे बचना भरी पड़ रहा है डिस्कवरी और नेशनल गेओग्रफिक चॅनल के आगे पीछे एम् टीवी और फेशन टीवी भी आता है , जिसे इन चेनलो के मुकाबले ज्यादा देखा जाता है यह तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की बात है जिसका असर आज भी अखबारों के मुकाबले काफी कम है समाचार पत्रों के सन्दर्भ में एक शेर आज भी गर्व से पढ़ा जाता है

न तीर निकालो न तलवार संभालो

जब तोप मुकाबिल हो तो अख़बार निकालो